BY KVK-II, SITAPUR {05 December 2018}
KVK-II, Sitapur celebrated World Soil Day on 5th December 2018 at KVK campus. Shri Arvind Mohan Mishra DD Ag, Sitapur was the chief guest of the program and Dr D.K.Singh, Veterinary Officer, Manpur (Sitapur) was the special guest on the occasion. During the inaugural address, Shri Mishra, focused primaririly on soil health management issue for the doubling of farmers income by 2022 and highlited about the importance of green manuring, Vermi-composting and use of Bio-fertilizers in the field before cropping. Dr D.K.Singh, vetiranary officer emphasiszed on importance of Farm Yard Manure and Cow urine in context to doubling of farmer’s income. Shri Shiv Shukla, Area Manager IFFCO, Sitapur address on applicaton of liquid biofertilizer formulations for soil health improvement and soil nutrient management. A quiz completion of soil health manegment was also organized by Dr Anand Singh, Head, KVK-II, Sitapur during the occasion and 10 best farmers were awarded by special prize as distributed by Bio-fertilizer and Bio-pesticides kit. An exhibition on awakening of soil testing and soil health card was also organized during the occasion. All the farmers actively participated in the programme and get their report about soil health in the form of Soil Health Card. A total 239 farmers participated in the programme and each were supplied 250 ml BIO-NPK formulation by Shri Sachin Pratap Tomar, Scientist, Soil Science, KVK-II, Sitapur for application under rabi crops. Soil Health Card distributed to 180 Farmers during the occaision. Shri Sailendra Singh, Scientist Extension expressed vote of thanks to the participants.
परम्परागत रूप से कृषि कर रहे किसानों को उनके द्वारा कई वर्षाें से संरक्षित एवं प्रयोग किये जाने वाले बीजों पर मालिकाना हक मिल सकता है। जरूरत है किसानों को जागरूक एवं सजक रहने की। पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली के सहयोग से कृषि विज्ञान केन्द्र कटिया सीतापुर द्वारा कृषकों को उनके गुणवत्तायुक्त बीजों पर मालिकाना अधिकार दिलवाने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर कृषकों को जगह-जगह जागरूक किया जा रहा है। इसी क्रम में विकास खण्ड बिसवां के ग्राम ओरीपुर, घूरीपुर, पड़रिया में कृषक अधिकार संरक्षण पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया।
के0वी0के0 कटिया के अध्यक्ष डाॅ0 आनन्द सिंह ने किसानों को जागरूक करते हुये कहा कि जनपद सीतापुर में परम्परागत रूप से उगायी जाने वाली फसलों के गुणवत्तायुक्त बीजों की अपार सम्पदा विराजमान है, किन्तु धीरे-धीरे उसके महत्व को न जानकर व हाइब्रिड फसलों के चलन से बेशकीमती बीज समाप्त होते जा रहे हंै। जिन किसानों के पास परम्परागत गुणवत्तायुक्त बीज आज भी विद्यमान हैं, वह किसान उन बीजों पर अपना मालिकाना हक प्राप्त करने हेतु कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण में अपना फार्म जमा करा सकते हैं। इसके लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत भी किया जायेगा।
केन्द्र के फसल सुरक्षा वैज्ञानिक डाॅ0 डी0एस0 श्रीवास्तव ने किसानों को बताया कि गतवर्ष जनपद सीतापुर से 176 प्रकार के पारम्परिक बीजों जिनमें अनाजवर्गीय, दलहन, तिलहन, फल सब्जी, औषधीय एवं सुगन्धित पौधों पर अपना मालिकाना हक प्राप्त करने हेतु किसानों ने आवेदन किया है। जिस पर परीक्षण का कार्य चल रहा है और विशेषता पाये जाने पर किसानों को उनका अधिकार दिलाया जायेगा। शस्य वैज्ञानिक डाॅ0 शिशिर कान्त सिंह ने बताया कि दलहन एवं तिलहन वर्गीय फसलों की नाना प्रकार की विविधतायें जनपद में विराजमान हैं। यदि उनकों समय रहते पहचान लिया गया तो जनपद सीतापुर जैव विविधता संरक्षण में अग्रणी गिना जायेगा।
प्रसार वैज्ञानिक एस0के0 सिंह ने युवक एवं युवतियों को जैव विविधता संरक्षण में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने हेतु प्रेरित किया। गृह वैज्ञानिका डाॅ0 सौरभ ने बीजों की गुणवत्ता की पहचान कर महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने हेतु घर-घर जाकर प्रेरित किया। पशुपालन वैज्ञानिक डाॅ0 आनन्द ने पशुओं की नस्ल संरक्षण एवं चारा बीजों के संरक्षण पर कृषकों को जागरूक किया। कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन सचिन प्रताप तोमर ने किया।
कृशि में टिकाउउत्पादन प्राप्त करने का मूल मंत्र है मृदा स्वास्थ में सुधारमुख्य रूप से मृदा में जीवांषकार्बन की अनउपलब्धताके आधारपरआकलन किया जा सकता है किसानों के खेतों में जीवांषकार्बन बढाने एवं रासायनिकउर्वरकों के अन्धाधुध प्रयोग से बचने व टिकाउउत्पादन प्राप्त करनेहेतुकृशि विज्ञान केन्द्र कटिया किसानोंको जगह-2 जागरूक कर रहाहै।इसीक्रम में नीलहरित षैवाल, एजोला, जैवउर्वरक एवं केचुआ खादउत्पादन एवं फसलों में प्रयोगपर एक दिवसीय प्रषिक्षण कार्यक्रम का आयोजन वि0ख0 बिसवां के ग्राम बखरिया में किया गया। कार्यक्रम में भारतीय कृशिअनुसंधानसंस्थानपूसा के नीलहरितसम्भाग के प्रो0 एवं प्रधानवैज्ञानिक डा0 सुनीलपब्बी एवं प्रधानवैज्ञानिक डा0 जेरार्डअब्राहम ने मुख्य अतिथि एवं विषिश्टअतिथि के रूप में प्रतिभागीकी।
डा0 सुनीलपब्बी ने अपनेसम्बोधन में कहानीलहरित षैवाल एवं जैवउर्वरक का किसानप्रयोगकरकेवातावरण में उपस्थितनाइटोजन एवं अघुनषीलअवस्था में उपलब्ध फास्फोरस एवं पोटाष का उपयोग कर रासायनिकउर्वरकों में कमी की जा सकती है साथ ही यह मृदा उर्वरता में वृद्धि कर लागत में कमी कर गुणवत्ताउत्पादनदिलायेगा।
डा0 जेरार्डअब्राहमने एजोला व जैवउर्वरक के विभिन्नफसलों में प्रयोग की विधि परचर्चा की एवं बताया कि यह कृशि में लागत कम करनेतथा मृदा के स्वास्थ में सुधार कर उत्पादन में वृद्धि करताहै।
कृशि विज्ञान केन्द्र, कटिया के अध्यक्ष व वरिश्ठवैज्ञानिक डा0 आनन्द सिंह ने धान में एजोला व नीलहरित षैवाल का उपयोग कर खरपतवारनियंत्रण व यूरिया की मात्रा कम कर सकते है, साथ हीउत्पादनभीबढाया जासकताहै।सीतापुर में सालभर 3-4 माहहरेचारेकीकिल्लतहोतीहै। ऐसे में पषुआहार के विकल्प की रूप में एजोलासदाबहारचारे के रूप में उपयोगी है साथ हीपषुपालनमेआनेवालीलागतको कम किया जा सकताहै।
कृशि के आधुनिकीकरण की वजह से फसलउत्पादप्रतिउत्पादजैसेभूसा, कड़वी, पैरा मेंभीकमीआरही है ।इनहरे व सुखेचारों की कमीमहगें व गुणवत्ताविहिनपषुआहार से की जा रहीहै।इसीवजह से उत्पादनलागत में वृद्धि हो रही है तथापषुपालन एक घाटे कासौेदा हो रहीहै। इस समस्या के लिए एजोलाउत्पादनपषुपालकों के लिए वरदान बन सकताहै।
कार्यक्रम में पादपसुरक्षावैज्ञनिक डा0 दया शंकरश्रीवास्तव, पशुपालनवैज्ञानिक डा0 आनन्द सिंह, प्रसारवैज्ञानिकश्री शैलेन्द्रकुमार सिंह, गृहवैज्ञानिका डा0 सौरभ एवं शस्य वैज्ञानिक डा0 शिशिरकान्त ने किसानोंकोप्रशिक्षित किया।कार्यक्रम सहायकश्रीसचिनतोमरव डा0 योगेन्द्रप्रताप सिंह ने बीजों में जैवउर्वरकउपचारविधि का प्रर्दषन किया ।
सीतापुर जनपद जो की कभी अपनी मूंगफली की खेती और उसकी मिठास के लिए जाना जाता था, इस जनपद में मूंगफली का काफी बड़ा क्षेत्रफल हुआ करता था और वह सारी सुबिधाये भी उपलब्ध थी जिससे यह खेती फलफूल रही थी जैसे यहां पर बाजार, व्यापारी, कारखाने सभी उपलब्ध थे और अब भी है पर समय के साथ-साथ मूंगफली यहाँ से खत्म होती गयी। कारण जानने के लिए कृषि विज्ञानं केन्द्र, कटिया के वैज्ञानिको द्वारा जनपद के उन इलाको का सर्वे किया गया जहाँ पर मूंगफली खूब हुआ करती थी कि क्या कारण रहा कि सारी परिस्थितियाँ अनुकूल होते हुए भी मूंगफली कि खेती बंद कर दी गयी साथ ही साथ जनपद के जिलाधिकारी कि अध्य्क्षता में मूंगफली अनुसन्धान निदेशालय, जूनागढ़, गुजरात के निदेशक डॉ राधाकृष्णन टी., प्रधान वैज्ञानिक डॉ राम दत्ता, व्यापारियों और किसानों के साथ भी बैठक कि गयी। सारी परिस्थितियों पर अध्य्यन करने के बाद केन्द्र द्वारा मूंगफली अनुसन्धान निदेशालय, जूनागढ़, गुजरात के सहयोग से एक परियोजना के तहत फिर से मूंगफली कि खेती को वापस किसानों के बीच लाने का निर्णय लिया गया। इस क्रम में कृषि विज्ञानं केन्द्र ने मूंगफली अनुसन्धान निदेशालय के सहयोग से मूंगफली कि खेती को जायद और खरीफ दोनों सीजन में कराने कि परियोजना पर काम शुरू कर दिया है इस परियोजना के तहत हम जायद में चयनित कृषको के साथ २० एकर क्षेत्रफल में मूंगफली का प्रदर्शन/ बीज उत्पादन कार्य कर रहे है चूँकि यहां पर पहले जायद में मूंगफली कि खेती की नहीं जाती थी इस लिए क्षेत्रफल कम लिया गया है अच्छी बात यह है कि फसल कटने के बाद कृषि विज्ञानं केन्द्र उनकी सारी पैदावार को खरीद भी लेगा उन्हें और कही नहीं बेचना है। खरीफ में इस क्षेत्रफल को अधिकतम बढ़ाने का लक्ष्य रहेगा। परियोजना के तहत ही कल लहरपुर विकास खंड के कुल्ताजपुर और नबीनगर ग्राम में प्रशिक्षण कार्यक्रम और प्रक्षेत्र
पर प्रथम पंक्ति प्रदर्शन का आयोजन किया गया जिसमें मूंगफली निदेशालय गुजरात से प्रधान वैज्ञानिक व हेड फसल सुरक्षा डॉ राम दत्ता ने स्वयं भाग लिया। कार्यक्रम में कृषि विज्ञानं केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक व हेड डॉ आनंद सिंह ने सभी का स्वागत करते हुए कहा कि मूंगफली गरीबो का काजू कहा जाता है मूँगफली के दाने मे 48-50 प्रतिशत वसा और 22-28 प्रतिशत प्रोटीन तथा 30 से 40 प्रतिशत तेल पाया जाता हैं। मूंगफली की खेती करने से भूमि की उर्वरता भी बढ़ती है। यदि किसान भाई मूंगफली की आधुनिक खेती करते हंै तो उससे किसान की भूमि सुधार के साथ किसान कि आर्थिक स्थिति भी सुधर जाती है। डॉ राम दत्ता ने किसानों से फसल सुरक्षा के तहत बरती जाने वाली सभी कीट- रोग बीमारियों आदि के बारे विस्तार से चर्चा करते हुए जायद में खेती की बारीकियों को भी बताया। प्रसार वैज्ञानिक शैलेन्द्र सिंह ने योजना की शर्तो और नियमो पर, डॉ आनंद सिंह पशुपालन वैज्ञानिक ने मूंगफली की खली पर, डॉ दया शंकर श्रीवास्तव ने बाजार पर, डॉ सौरभ ने मूंगफली की पौष्टिकता पर, डॉ शिशिर कान्त ने सस्य क्रियाओ पर, सचिन प्रताप तोमर ने मृदा जाँच पर कृषको को प्रशिक्षित किया कार्यक्रम का संचालन योगेंद्र प्रताप सिंह ने किया।